परिचय
नमस्कार दोस्तों,मेरा ब्लॉग सफ़र के साथी उन सब लोगों के बारे में है जो मुझे मेरे सफ़र में मिले,या यूं कहें कि जिनसे मैं मिली। सच में देखा जाये तो जीवन एक यात्रा है लेकिन मैं यहां उस सफ़र की बात कर रही हूं जो मैं लगभग रोज तय करती हूं अपने शहर से दूसरे शहर तक। मैं एक कामकाजी महिला हूं जिसे लगभग रोज कुछ दूरी तय करनी होती है अपने कार्य स्थल तक पहुंचने के लिए और इसी दूरी में मुझे जो लोग मिलते हैं उन्हीं के कुछ किस्से आपके साथ बाटूंगी। मैं बस में अपनी सीट पर बैठी थी और बगल वाली सीट पर आने वाले के बारे में सोच रही थी क्योंकि सहयात्री पर आपकी यात्रा बहुत हद तक निर्भर करती है विशेष तया जब आप अकेले यात्रा कर रहे हैं।एसी बस होने के कारण मेरा लगभग पांच घंटे का सफ़र मुझे ज्यादा मुश्किल नहीं लग रहा था। तभी एक सत्रह -अठरह वर्षीय लड़की एक बड़े सूटकेस ,एक बैग के साथ बस में चढ़ती है,सीट नंबर कन्फर्म करके मेरे बगल वाली सीट पर बैठ जाती है। उसकी आंखों में चमक थी , उत्साह से परिपूर्ण,खुले आसमान में उड़ने को तैयार , चेहरे पर मासूमियत से पता चल रहा था कि पहली बार वह अकेले सफ़र करने वाली है। लेकिन आत्मविश्वास भरपूर था। तभी एक महिला पानी का बोतल और चिप्स के पैकेट के साथ उसके पास आयी, उनके चेहरे पर बेटी की विदाई का दर्द साफ झलक रहा था।"मम्मी आप क्यों ले आयी, मैं रास्ते में ले लेती", बेटी ने कहा। मां की आंखों से आंसू बहने लगे, मेरी तरफ देखकर बोली बहन जी आप कहां तक जायेंगी ? मैंने उत्तर दिया ,"दिल्ली"।इसका ध्यान रखिएगा,इसको भी दिल्ली जाना है। वैशाली मैट्रो स्टेशन पर उतरेगी ,यह कहकर उन्होंने अपने आंसू पोंछे और बेटी को प्यार से देखने लगी। मैंने उनको आश्वासन दिया और बताया कि मुझे भी वही उतरना है।
बस चलने लगी।मैम,आप यहां रहते हो या दिल्ली? मैं तो पहली बार दिल्ली जा रही हूं। उसकी बातें सुनकर मुझे समझ आया कि वो मुझसे बातें करने में दिलचस्पी ले रही है। वरना आज कल के नौजवान अपनी दुनिया में रहते हैं।उसका नाम नेहा था।
नेहा ने अपने बारे में बताया कि वो मुरादाबाद शहर की रहने वाली है। अभी-अभी उसका १२ वीं का परिणाम आया है और उसने ९८ प्रतिशत अंक प्राप्त किए है।अब वो दिल्ली विश्वविद्यालय से आगे की पढ़ाई करना चाहती है। उसके परिवार में वो पहली लड़की है जो घर से बाहर रहकर पढ़ाई करेगी। मैंने उसे बताया कि मैं नोएडा में रहती हूं। मुझे भी वैशाली मैट्रो स्टेशन पर उतरना है।अब वो मुझसे और भी ज्यादा विश्वास के साथ बातें कर रही थी। वह दिल्ली की लड़कियों के बारे में बात कर रही थी कि दिल्ली में लड़कियां बहुत स्मार्ट होती हैं। अपनी फिटनेस का बहुत ध्यान रखती हैं। इन्हीं सब बातों में कब मैट्रो स्टेशन आ गया पता नहीं चला। मैट्रो तक पहुंचने में मैंने उसकी मदद की।उसे राजीव चौक तक जाना था लेकिन मेरा और उसका साथ यमुना बैंक तक था। मैट्रो के अंदर भी नेहा बहुत उत्साहित थी और वहां उसकी उम्मीद से मोटी लड़कियों को देखकर मुझसे धीरे धीरे उनके अनफिट होने की बात कर रही थी। उसके दिमाग में दिल्ली और यहां की लड़कियों को लेकर जो भी ग़लत या यूं कहें कि भ्रम थे वो दूर होने वाले थे। नेहा मुझे उस छोटे बच्चे की तरह निश्छल लग रही थी जो दुनिया को केवल अपनी दुनिया में समेट लेना चाहता है।सच में कई बार छोटे शहरों के चमकते सितारे बड़े शहरों की हैलोजेन लाइट्स की चकाचौंध में अपनी चमक खो देते हैं। मेरी भगवान से यही प्रार्थना है कि नेहा चमकता सितारा ही रहे और उसकी निश्छल आंखों में चमक बनी रहे।मेरा स्टेशन आ गया और नेहा को आगे सावधानी से जाने की हिदायत देते हुए मैं उतर गयी।
इस तरह एक सफ़र के साथी के साथ सफ़र ख़त्म हुआ।
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