प्यार ...........ऑन द वे
आज मैं एसी बस में सफ़र कर रही थी। बुकिंग के अनुसार मेरी सीट सबसे पीछे वाली से पहले वाली सीट थी। आज मेरे साथ वाली सीट पर कोई नहीं था। मैं भर गर्मी में अपना सामान सीट पर व्यवस्थित कर आराम की मुद्रा में आने वाली ही थी कि मैंने देखा कि बस में जो दूसरी लाइन होती है , वहां मेरे ही लेवल वाली सीट पर एक लड़की एक लड़के से सीट नंबर कन्फर्म कर रही थी। लड़के ने गर्दन हां में हिलाते हुए उसके प्रश्न को स्वीकृति दी। दोनों लगभग हम उम्र थे। लड़का चेहरे से ही बातूनी लग रहा था। दोनों की बात चीत शुरू हो गई।मुझ तक स्पष्ट आवाज़ तो नहीं आ रही थी पर श्रव्य तरंगों से पता चल रहा था कि मित्रता की शुरुआत हो चुकी है।उन दोनों का मधुर संवाद सुनते सुनते मुझे नींद आ गई। अचानक बस रुकी तो देखा एक जनसुविधा ढाबा आ चुका था। आंखें सामने की सीट पर घूमी, लड़की अकेली सीट पर थी,बस लगभग खाली थी, चूंकि मुझे भी बाहर नहीं जाना था, इसलिए मैं खिड़की से बाहर देखने लगी। अचानक लड़की के चीखने की आवाज़ आई, मैंने चौंक कर देखा तो लड़का पसीने से लथपथ , घुटनों पर बैठा हुआ था , उसके हाथ में एक फूल था जो ग़ुलाब का तो नहीं था लेकिन लाल रंग का था। मैंने लड़की की तरफ़ देखा वो भावुक हो रही थी उसने फूल स्वीकार किया, दोनों एक दूसरे का हाथ थाम कर ,एक दूसरे को देख रहे थे और मैं उनको। बिल्कुल फिल्मी सीन था और मुझे वहां अपनी उपस्थिति अब बेमानी लग रही थी। मैं बस से नीचे उतर कर आ गई और लगभग पांच मिनट बाद ही कंडक्टर ने सीटी बजाकर सभी सवारियों को बस में बैठने के लिए बोला। बस में चढ़ते ही बरबस मेरी नज़र उस जोड़े की ओर गई , दोनों के चेहरे पर मुस्कराहट थी, उनको देखकर मेरे चेहरे पर भी अनायास ही मुस्कराहट आ गई, क्यों कि उनके प्रेम प्रारम्भ की मैं एक गवाह थी। उसके बाद बस चल पड़ी,उन दोनों की बातें मुझ तक पहुंच पा रही थी, दोनों आगामी जीवन के सपने बुनने में व्यस्त हो गए । मैं सोच रही थी कि निश्छल प्रेम शायद यही होता है। भविष्य में क्या होगा ये कोई नहीं जानता लेकिन आज वो दोनों प्रेम में थे। मैंने आज तक ऐसा सिर्फ फिल्मों में देखा था पर आज आंखों के सामने।इनका प्यार मुकम्मल हो,इसी तरह एक दूसरे का हाथ थाम कर ये दोनों हमेशा चलते रहें , यही आशीर्वाद मेरे दिल से उनके लिए निकल रहा था ।वो दोनों अभी भी खोए हुए थे।मेरा वैशाली मैट्रो स्टेशन आ चुका था , मैं जब आज वहां उतरी,मन में अलग खुशी थी। आज मेरे सफ़र के दो साथी थे, जिनकी मंजिल रास्ते में शायद एक हो गयी थी।
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