टूटा हुआ दिल
आज मैं जब बस में चढ़ी सारी बस खाली -खाली लग रही थी। ऐसा लग रहा था कि गर्मी के कारण लोगों ने दोपहर में सफ़र करना बंद कर दिया है। खैर! मुझे तो दोपहर में ही सफ़र करना पड़ता है क्योंकि स्कूल की छुट्टी दोपहर के समय ही होती है। बहरहाल आज मुझे खिड़की की सीट आसानी से मिल गई वरना गढ़ मुक्तेश्वर के पास यात्री ढाबे पर बस से कोई उतरता था तब जाकर खिड़की वाली सीट मिलती थी।भरी गर्मी में रोडवेज बस में गर्म लू के थपेड़ो के साथ वो हवा भी सुकून देती थी क्योंकि सप्ताहांत में घर जाने को मिलता था और परिवार से मिलने का जोश भी मन में भरा रहता था। बहुत से लोग उस समय खिड़की बंद कर लेते थे लेकिन मुझे उस हवा के साथ बहना अच्छा लगता था। मैं अपना सामान व्यवस्थित करके बैठ गई और सोने की तैयारी में ही थी क्योंकि उस दिन मैं थोड़ी थकान महसूस कर रही थी।तभी एक लड़का मेरी सीट से पीछे वाली सीट पर आकर बैठ गया। मैंने उसका चेहरा नहीं देखा था । बस चल पड़ी , दोपहर में सड़कें भी खाली-सी थीं इसलिए बस सही रफ्तार से चल रही थी। लगभग आधा घंटे बाद मेरे पीछे वाली सीट पर बैठा हुआ लड़का ...