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यादें

आजकल मेरे मायके में पुताई काम चल रहा है, तो ज़ाहिर सी बात है घर उलट -पुलट है। मेरे माता-पिता ही आज के समय में वहां रहते हैं।हम बहनों के विवाह हमें दूसरे शहर ले गये और भाई को उसकी नौकरी। आज सुबह मां से फ़ोन पर बात हो रही थी तो बात करते -करते मां का गला रुंध गया, उन्होंने एक ऐसी चीज़ का जिक्र किया जो कभी हम लोगों के लिए किसी कोहिनूर से कम नहीं थी, वो था अष्टम चौकड़ा।हम लोग उसको यही बोलते हैं, वैसे तो वह ज़मीन पर काढ़कर खेला जाने वाला खेल है जिसे कौड़ियों के साथ खेला जाता है, गोटियां उसमें कुछ भी बना कर रख ली जाती हैं, लेकिन हम लोगों ने उसको ड्राइंग शीट पर बनाकर फिर गत्ते पर चिपकाया हुआ था, और लूडो की गोटियों से हम उसे खेलते थे। यह वो समय था जब मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और मेरी बहन स्नातक कर रही थी, भाई हास्टल में रहकर पढ़ रहा था। पापा की नौकरी दूसरे शहर में होने के कारण वह शनिवार की शाम को आते थे और सोमवार की सुबह चले जाते थे।कुल मिलाकर हम तीनों मां -बेटी रह जाते थे घर में।लाइट कई घंटों के लिए गायब हो जाती थी और हमारी अष्टम चौकड़े की महफ़िल जमती थी,हाथ के पंखों से हवा करते -करते समय कब ...

धारा ३०२

आज मुझे विद्यालय अपनी कार से जाना पड़ रहा था।नयी जगह पोस्टिंग हुई थी , तो अभी आने -जाने का बंदोबस्त नहीं हो पाया था। चूंकि मुझे कार चलानी नहीं आती है इसलिए एप के द्वारा ड्राइवर बुक करके जाना पड़ रहा था। पहले भी कई बार गयी थी, कुछ नया नहीं था लेकिन ड्राइवर में एक बात थी कि वह बातूनी बहुत था, बातें मैं भी कम नहीं करती, लेकिन अनजान लोगों से कम ही बोलना अच्छा रहता है। खैर!हम दोनों गंतव्य की ओर चले, डेढ़ से पौने दो घण्टे का समय मुझे बिताना था। ड्राइवर २५-२६ वर्ष का नौजवान था, बोलने के तरीके से पढ़ा -लिखा लग रहा था, उसने बात शुरू कि,"मैम आप रोज ड्राइवर लेकर जाते हैं?" मैंने उत्तर दिया, "कभी- कभी। मेरे संक्षिप्त जवाब से कार में फिर से शान्ति छा गयी। थोड़ी देर बाद उसने, ट्रैफिक, सड़क, स्पीड ब्रेकर आदि की चर्चा से बातों का अनवरत सिलसिला शुरू किया। बातों - बातों में उसने बताया कि उसकी उम्र ज्यादा नहीं है, लेकिन शादी जल्दी हो जाने के कारण वह दो बच्चों का पिता है।घर में उसके माता-पिता और पत्नी -बच्चे सब साथ रहते हैं। फिर उसने बताया कि पांच साल पहले उसके बड़े भाई का परिवार भी साथ रहत...

प्यार ...........ऑन द वे

आज मैं एसी बस में सफ़र कर रही थी। बुकिंग के अनुसार मेरी सीट सबसे पीछे वाली से पहले वाली सीट थी। आज मेरे साथ वाली सीट पर कोई नहीं था। मैं भर गर्मी में अपना सामान सीट पर व्यवस्थित कर आराम की मुद्रा में आने वाली ही थी कि  मैंने देखा कि बस में जो दूसरी लाइन होती है , वहां मेरे ही लेवल वाली सीट पर एक लड़की एक लड़के से सीट नंबर कन्फर्म कर रही थी। लड़के ने गर्दन हां में हिलाते हुए उसके प्रश्न को स्वीकृति दी। दोनों लगभग हम उम्र थे। लड़का चेहरे से ही बातूनी लग रहा था। दोनों की बात चीत शुरू हो गई।मुझ तक स्पष्ट आवाज़ तो नहीं आ रही थी पर श्रव्य तरंगों से पता चल रहा था कि मित्रता की शुरुआत हो चुकी है।उन दोनों का मधुर संवाद सुनते सुनते मुझे नींद आ गई। अचानक बस रुकी तो देखा एक जनसुविधा ढाबा आ चुका था। आंखें सामने की सीट पर घूमी, लड़की अकेली सीट पर थी,बस लगभग खाली थी, चूंकि मुझे भी बाहर नहीं जाना था, इसलिए मैं खिड़की से बाहर देखने लगी। अचानक लड़की के चीखने की आवाज़ आई, मैंने चौंक कर देखा तो लड़का पसीने से लथपथ , घुटनों पर बैठा हुआ था , उसके हाथ में एक फूल था जो ग़ुलाब का तो नहीं था लेकिन लाल रंग क...

टूटा हुआ दिल

आज मैं जब बस में चढ़ी सारी बस खाली -खाली लग रही थी। ऐसा लग रहा था कि गर्मी के कारण लोगों ने दोपहर में सफ़र करना बंद कर दिया है। खैर! मुझे तो दोपहर में ही सफ़र करना पड़ता है क्योंकि स्कूल की छुट्टी दोपहर के समय ही होती है। बहरहाल आज मुझे खिड़की की सीट आसानी से मिल गई वरना गढ़ मुक्तेश्वर के पास यात्री ढाबे पर बस से कोई उतरता था तब जाकर खिड़की वाली सीट मिलती थी।भरी गर्मी में रोडवेज बस में गर्म लू के थपेड़ो के साथ वो हवा भी सुकून देती थी क्योंकि सप्ताहांत में घर जाने को मिलता था और परिवार से मिलने का जोश भी मन में भरा रहता था। बहुत से लोग उस समय खिड़की बंद कर लेते थे लेकिन मुझे उस हवा के साथ बहना अच्छा लगता था।               मैं अपना सामान व्यवस्थित करके बैठ गई और सोने की तैयारी में ही थी क्योंकि उस दिन मैं थोड़ी थकान महसूस कर रही थी।तभी एक लड़का मेरी सीट से पीछे वाली सीट पर आकर बैठ गया। मैंने उसका चेहरा नहीं देखा था । बस चल पड़ी , दोपहर में सड़कें भी खाली-सी थीं इसलिए बस सही रफ्तार से चल रही थी। लगभग आधा घंटे बाद मेरे पीछे वाली सीट पर बैठा हुआ लड़का ...

परिचय

नमस्कार दोस्तों,मेरा ब्लॉग सफ़र के साथी उन सब लोगों के बारे में है जो मुझे मेरे सफ़र में मिले,या यूं कहें कि जिनसे मैं मिली। सच में देखा जाये तो जीवन एक यात्रा है लेकिन मैं यहां उस सफ़र की बात कर रही हूं जो मैं लगभग रोज तय करती हूं अपने शहर से दूसरे शहर तक। मैं एक कामकाजी महिला हूं जिसे लगभग रोज कुछ दूरी तय करनी होती है अपने कार्य स्थल तक पहुंचने के लिए और इसी दूरी में मुझे जो लोग मिलते हैं उन्हीं के कुछ किस्से आपके साथ बाटूंगी।                      मैं बस में अपनी सीट पर बैठी थी और बगल वाली सीट पर आने वाले के बारे में सोच रही थी क्योंकि सहयात्री पर आपकी यात्रा बहुत हद तक निर्भर करती है विशेष तया जब आप अकेले यात्रा कर रहे हैं।एसी बस होने के कारण मेरा लगभग पांच घंटे का सफ़र मुझे ज्यादा मुश्किल नहीं लग रहा था। तभी एक सत्रह -अठरह वर्षीय लड़की एक बड़े सूटकेस ,एक बैग के साथ बस में चढ़ती है,सीट नंबर कन्फर्म करके मेरे बगल वाली सीट पर बैठ जाती है। उसकी आंखों में चमक थी , उत्साह से परिपूर्ण,खुले आसमान में उड़ने को तैयार , चेहरे पर मासूमियत स...