यादें
आजकल मेरे मायके में पुताई काम चल रहा है, तो ज़ाहिर सी बात है घर उलट -पुलट है। मेरे माता-पिता ही आज के समय में वहां रहते हैं।हम बहनों के विवाह हमें दूसरे शहर ले गये और भाई को उसकी नौकरी। आज सुबह मां से फ़ोन पर बात हो रही थी तो बात करते -करते मां का गला रुंध गया, उन्होंने एक ऐसी चीज़ का जिक्र किया जो कभी हम लोगों के लिए किसी कोहिनूर से कम नहीं थी, वो था अष्टम चौकड़ा।हम लोग उसको यही बोलते हैं, वैसे तो वह ज़मीन पर काढ़कर खेला जाने वाला खेल है जिसे कौड़ियों के साथ खेला जाता है, गोटियां उसमें कुछ भी बना कर रख ली जाती हैं, लेकिन हम लोगों ने उसको ड्राइंग शीट पर बनाकर फिर गत्ते पर चिपकाया हुआ था, और लूडो की गोटियों से हम उसे खेलते थे। यह वो समय था जब मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और मेरी बहन स्नातक कर रही थी, भाई हास्टल में रहकर पढ़ रहा था। पापा की नौकरी दूसरे शहर में होने के कारण वह शनिवार की शाम को आते थे और सोमवार की सुबह चले जाते थे।कुल मिलाकर हम तीनों मां -बेटी रह जाते थे घर में।लाइट कई घंटों के लिए गायब हो जाती थी और हमारी अष्टम चौकड़े की महफ़िल जमती थी,हाथ के पंखों से हवा करते -करते समय कब ...